झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का 81 वर्ष की आयु में निधन

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन को सोमवार को निधन हो गया। वह 81 साल के थे। वह लंबे समय से बीमार थे। दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली।अस्पताल ने एक बयान जारी कर बताया कि सोमवार सुबह 8:56 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। लंबी बीमार के बाद उनका निधन हो गया। शिबू सोरेन किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे। डेढ़ महीने पहले उन्हें स्ट्रोक भी आया था। एक महीने से वह लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे।झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनके निधन की पुष्टि कर दी है। उन्होंने X पर लिखा, ‘आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूं।’

शिबू सोरेन को झारखंड में ‘गुरुजी’ भी माना जाता था। बिहार के हजारीबाग जिले के नामरा गांव में हुआ था। 1970 के दशक में उनका राजनीतिक करियर शुरू हुआ। जनवरी 1975 में उन्होंने जामताड़ा में ‘बाहरियों’ को खदेड़ने के लिए एक आंदोलन किया था, जिसमें कथित रूप से 11 लोगों की मौत हो गई थी।

 

साल 1977 के लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन ने पहला चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। इसके बाद 1980 का चुनाव लड़ा और लोकसभा पहुंचे। इसके बाद 1986, 1989, 1991 और 1996 का चुनाव भी जीता। 2004 का लोकसभा चुनाव भी उन्होंने जीता और मनमोहन सिंह वाली UPA सरकार में कोयला मंत्री बने।अलग झारखंड की मांग को लेकर उन्होंने कई आंदोलन चलाए। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा नाम से राजनीतिक पार्टी भी शुरू की।2005 के विधानसभा चुनाव के बाद शिबू सोरेन पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, बहुमत नहीं होने के कारण सिर्फ 10 दिन में ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।शिबू सोरेन जब 18 साल के थे, तब उन्होंने संथाल नवयुवक संघ की स्थापना की। साल 1972 तक वे बंगाली मार्क्सवादी ट्रेड यूनियन नेता एके रॉय और कुर्मी-महतो जाति के नेता बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की। इस पार्टी का मकसद ही साफ था कि अलग झारखंड।

उन्होंने झारखंड के लोगों को उनकी जमीनों पर हक दिलाना शुरू किया। आदिवासियों को खेती के लायक जमीनों पर कब्जा देना शुरू किया। उन्होंने संथाल समाज की महाजनी प्रथा को बंद कराया। उन्होंन शराबबंदी अभियान चलाया। इस बीच उनके पिता सोबरन सोरेन की किसी ने हत्या कर दी थी।पिता की हत्या के बाद शिबू सोरेन, धनबाद के टुंडी में एक स्कूल खोलकर आदिवासी बच्चों को पढ़ाने लगे। उन्हें इसी वजह से लोग दिशोम गुरु या गुरु जी कहते हैं। वे सामाजिक आंदोलन करते थे। वे अपने घर पर अदालत लगाते थे और उन वर्गों के साथ न्याय करते थे, जिनके साथ अन्याय हुआ है। उनकी बातों को झारखंड के लोग आज भी मानते हैं। उन्हें उनके समर्थक गुरुजी ही बुलाते हैं।

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